वेदों की ओर एक बड़ा कदम ‘निगम निडम्’ वेदगुरुकुलम्

Fri, Jan 21 , 2022, 03:50 AM

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देश के सुनहरे प्राचीन अतीत से रूबरू होने और वैदिक ज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए वेदों का सांगोपांग अध्ययन कितना अनिवार्य है। इस बारे में स्वामी दयानंद ने बहुत गहन मनन चिंतन किया था और उसके बाद उन्होंने इसे अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया और उसके लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। स्वामी जी की महान दृष्टि का महत्वपूर्ण अंश भारत के परंपरागत शिक्षण पद्धति जिसे हमारे ऋषियों-मुनियों द्वारा स्थापित किया गया था, उसके आधार पर वैदिक गुरुकुलों की स्थापना रहा। प्राचीन आर्ष परंपरा पद्धति के तहत उनके द्वारा आरोपित आर्य समाज की बेल वेदों और देववाणी संस्कृत के पठन पाठन के रूप में उत्तर और पश्चिम भारत में काफी फूली फली, लेकिन दक्षिण भारत में उस गति से इसका प्रचार प्रसार नहीं हो सका। कारण स्वामी के बाद उनके स्वामी श्रद्धानंद जैसे महान शिष्यों ने वैदिक पद्धति से गुरुकुलों के मार्फत संस्कृत और वेदों के अध्ययन के लिए जैसे महान प्रयास किया, वैसा दक्षिण में नहीं हुआ। परिणामतः दक्षिण में वैसा विकास नहीं हुआ। परिणामस्वरूप उत्तर की तुलना में दक्षिण में वैसे सांगोपांग वेद और संस्कृत के अध्यापन के काम करने वाले वैदिक विद्वानों, आचार्यों, पुरोहितों, पूर्णकालिक प्रचारकों, वानप्रस्थियों और संन्यासियों की कमी है, जिससे वैदिक धर्म प्रचार दक्षिण में अपनी जड़ नहीं जमा सका। दक्षिण की इसी कमी को दूर करने के लिए और स्वामी दयानंद के विजन को पूरा करने के लिए, समर्पित संस्कृति कर्मी तैयार करने के लिए और हमारे वैदिक ऋषिओं-मुनियों के प्राचीन शिक्षण पद्धति को दक्षिण में प्रचार प्रसार के लिए और अन्य महान उद्देश्यों के साथ २००५ के अप्रैल महीने में तीन एकड़ के विशाल, रमणीय और हरे-भरे प्रांगण में तेलंगाणा राज्य के सिद्धिपेट जिले के गज्वेल तहसील के पिडिचेड गांव में जो हैदराबाद शहर से लगभग ७० किलोमीटर दूर है आचार्य उदयन द्वारा निगम नीडम् गुरुकुलम् की स्थापना की गई। जो अब तक की अपनी डेढ़ दशक की यात्रा में अपने लक्षित उद्देश्यों को प्राप्त करता हुआ ज्ञान के एक ऐसे वट वृक्ष में तब्दील हो चुका है, जिसके छांव तले वैदिक ज्ञान का अध्ययन-अध्यापन और शोध कार्य ऋषिओं-मुनियों द्वारा स्थापित प्राचीन पद्धति के अनुसार हो रहा है। गुरुकुल के स्नातकों का पहला बैच निकल चुका है और उन्होंने अपने ज्ञान के आलोक से देश के कई हिस्सों को आलोकित भी करना शुरू कर दिया है। 
निगम नीडम् वेदगुरुकुलम्
यह पिडिचेड गांव में एकांत और पर्यावरण अनुकूल हरे-भरे प्रांगण में स्थित है। पूरा प्रांगण तरह-तरह के फूल-फलदार और उपयोगी पेड़ों से आच्छादित है। आधे से ज्यादा प्रांगण में सुसज्जित छात्रावास, यज्ञमंडपम्, ध्यान मंदिर, भोजन गृह, पाक शाला, समृद्ध पुस्तकालय, अतिथि गृह बनाया गया है। हृष्ट पुष्ट गीर गायोंवाली गोशाला विशेष आकर्षण है। आधे प्रांगण में धान की फसल लहलहा रही है। छात्रों के लिए स्नानघर एवं शौचालय की साफ-सुथरी व पर्याप्त व्यवस्था है। जल और विद्युत की पर्याप्त आपूर्ति है और गुरुकुल सौर ऊर्जा यंत्र से भी सुसज्जित है। ब्रह्मचारी की सारी आवश्यकता की पूर्ति प्रांगण में हो रही है। गुरुकुल में पठन पाठन का आदर्श माहौल है।
आचार्य उदयन मीमांसक 
१६ जुलाई १९७० को जन्मे आचार्य उदयन का १०वीं छात्र के रूप में स्वामी दयानंद सरस्वती ,आर्य समाज की जानकारी हुई और उनके कालजयी ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश के अध्ययन के माध्यम से आपका वैदिक जगत से परिचय हुआ। उसके बाद वैदिक धर्म और संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए कार्य करने के विचार अंकुरित हुए और उसके बाद सांगोपांग वेद अध्ययन के लिए अपनी जन्मभूमि उस समय के आंध्र प्रदेश और आज के तेलंगाणा के करीम नगर जिले के अपने गांव से निकल पड़े और हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक सहित कई गुरुकुलों से विधिवत विद्या का अध्ययन किया और उसके बाद कई गुरुकुलों में शिक्षण कार्य करने के बाद २००५ में निगमनीडम् की स्थपाना की और तब से अध्यापन के साथ शोध और तत्संबंधी कार्यों में लगे हुए हैं। अभी तक आपके वैदिक सिद्धांतों पर ५० से अधिक शोध पत्र और निबंध आदि नामचीन पत्रिकाओं में जैसे ‘वेदवाणी’ आदि में प्रकशित हो चुके हैं और इसके वैदिक पाणिनीय शिक्षा शास्त्र पर उनके द्वारा लिखा भाष्य शिक्षातत्वालोक जो देश भर के आर्य गुरुकुलों में पढ़ाया जाता है। इसके अलावा पाणिनीय शिक्षा, हितोपदेश, गोदानविधि, वैदिक-पर्व पद्धति नववर्षेष्टि, निरुक्तनिर्वचनानि आदि ज्ञानवर्धक और उपयोग ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं और जिसका लाभ आम जन ले रहे हैं। उक्त सारे ग्रन्थ हिंदी और संस्कृति में हैं। इसके अलावा उन्होंने कई और ग्रंथ भी तेलगू में लिखे हैं। उन्हें उनके अतुलनीय ज्ञान और कार्य के लिए व्याकरण निधि, आर्य आचार्य, वेदोपाध्याय, वाचस्पति, मीमांसक, श्रौतयाग-शिरोमणि, आर्य पुरुष आदि पुरस्कारों और उपाधियों से भी नवाजा गया है। आचार्य उदयन मीमांसक अपने छात्रों में व्याकरणादि के अध्यापन के साथ-साथ चरित्र, नैतिकता, धार्मिकता और देशभक्ति की भी सदा प्रेरणा देते हैं। उन्हें उत्तम ग्रंथों का परिचय देने के साथ उन्हें स्वाध्यायशील बनाना उनकी विशेषता है।
पाठ्यक्रम 
निगमनीडम् में पढ़ाए जाने वाले ग्रंथ 
1) छह वेदांग
1.1 पाणिनीय शिक्षाशास्त्रम्
1.2 अष्टाध्यायी से लेकर महाभाष्य (संपूर्ण) तक संस्कृत व्याकरण के सभी ग्रंथ
1.3 यास्क मुनि कृत निरुक्तशास्त्रम् (दुर्ग आचार्य एवं स्कंद की टीका के साथ)
1.4 पिंगलछंदःशास्त्रम् (छंदोगणित के साथ)
1.5 ज्योतिषशास्त्रम् (सूर्यसिद्धांत आदि)
1.6 कल्प वेदाङ्ग (श्रौतसूत्र - प्रयोग के साथ गृहसूत्र - प्रयोग के साथ शुल्बसूत्र - प्रयोग के साथ धर्मसूत्र)
2) भारतीय छह दर्शनशास्त्र (वेद के छह उपांग)
2.1. न्यायदर्शनम् (वात्स्यायनभाष्य के साथ) तर्कशास्त्र आदि
2.2 वैशेषिकदर्शनम् (उपस्कार व्याख्या सहित)
2.3 सांख्यदर्शनम् (विज्ञानभिक्षु के भाष्य के साथ) सांख्यकारिका आदि 
2.4 योगदर्शनम् (व्यासभाष्य के साथ) 
2.5 पूर्वमीमांसादर्शनम् (शाबर भाष्य के साथ) 
2.6 उत्तर मीमांसादर्शनम् (वेदान्तदर्शनम्) 
3) ग्यारह उपनिषद् (ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, छान्दोग्य, बृहदारण्यक, श्वेताश्वतर) 
4) ऐतरेय, शतपथ आदि सभी ब्राह्मण ग्रंथ 
5) ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद आदि सभी संहिता ग्रंथ। 
6) साहित्य (रामायण, महाभारत आदि नीतिग्रंथ) 
7) काव्यग्रंथ एवं लक्षणग्रंथ 
8) वाक्यपदीय, वैयाकरणभूषणसार आदि व्याकरण के दार्शनिक ग्रंथ 
9) लेख और ग्रंथों की लेखन कला, प्रवचन कला, अध्यापन कला आदि सिखाये जाते है।
10) कंप्यूटर का टाईपिंग, डिजाईनिंग आदि का भी प्रशिक्षण दिया जाता है।
संपर्क सूत्र 
निगमनीडम् - वेदगुरुकुलम् 
ग्राम-पिडिचेड (बेजुगाम रोड) 
पोस्ट - गज्वेल, जिला- सिद्धिपेट 
तेलंगाणा : 502278 
6281 250 379 
nigamaneedam@gmail.com

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