विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा स्वीकार होने के बाद रणजीत चौटाला के मंत्री बने रहने पर उठा सवाल

Wed, May 01, 2024, 03:46

Source : Uni India

चंडीगढ़।  हरियाणा में हिसार लोकसभा सीट (Hisar Lok Sabha seat) से भारतीय जनता पार्टी (BJP) प्रत्याशी रणजीत चौटाला (Ranjit Chautala) के विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र स्वीकार हो जाने के बावजूद मंत्री पद पर बने रहने पर सूचना अधिकार कार्यकर्ता (rights activist) और पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय (Haryana High Court) के वकील हेमंत कुमार ने सवाल उठाया है। सिरसा जिले की रानिया विधानसभा सीट से विधायक श्री चौटाला का इस्तीफा एक माह और एक सप्ताह का लंबा समय बीते जाने के बाद मंगलवार को हरियाणा विधानसभा अध्यक्ष (स्पीकर) ज्ञान चंद गुप्ता ने स्वीकार किया। श्री चौटाला, 24 मार्च को भाजपा में शामिल हुये थे, और इसके साथ ही उन्हें हिसार लोकसभा सीट से प्रत्याशी घोषित किया गया था।

नायब सिंह सैनी सरकार में  चौटाला को 22 मार्च को मंत्री बनाया गया था और उन्होंने साफ किया है कि विधानसभा की सदस्यता छोड़ने के बावजूद मंत्री पद से इस्तीफा नहीं देंगे। विधानसभा अध्यक्ष ने भी कल कहा कि तकनीकी रूप से चौटाला छह महीने तक मंत्री बन सकते हैं।
कुमार के अनुसार विधानसभा अध्यक्ष ने चूंकि उनकी विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र गत 24 मार्च की पिछली तिथि से ही स्वीकार किया है, जिस दिन वह निर्दलीय विधायक होने बावजूद भाजपा‌ में शामिल हुये थे, जो‌ हालांकि दल-बदल विरोधी कानून में प्रतिबंधित है, इसलिये उसी दिन से इस्तीफा स्वीकार होने फलस्वरूप रणजीत‌ सदन की अयोग्यता से बच गये हैं।कुमार के अनुसार गत 12 मार्च को मंत्री पद की शपथ लेते समय चौटाला विधायक थे और अब 24 मार्च से वह विधायक नहीं रहे, इस कारण देखा जाये, तो वास्तव में 24 मार्च से वह गैर-विधायक मंत्री के तौर पर कैबिनेट मंत्री पद की शक्तियों का प्रयोग और कार्यों का निर्वहन कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि भले संविधान के प्रावधानों के अनुसार विधायक न होते हुये भी कोई व्यक्ति अधिकतम 6 महीने तक प्रदेश का मुख्यमंत्री या मंत्री नियुक्त हो सकता है, एवं उस पद पर आगे बने रहने के लिये नियुक्ति के छह महीने के भीतर उसे विधानसभा का सदस्य अर्थात विधायक निर्वाचित होना होता है, जैसे वर्तमान मुख्यमंत्री नायब सैनी भी मौजूदा 14 वीं हरियाणा विधानसभा के सदस्य नहीं है, हालांकि वह 25 मई को‌ निर्धारित करनाल विधानसभा सीट उपचुनाव में भाजपा के उम्मीदवार हैं, लेकिन उपचुनाव हारने की स्थिति में उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ेगा, भले ही छह महीने में कुछ माह की अवधि शेष बची हो। उच्चतम न्यायालय के एक निर्णय के फलस्वरूप एक विधानसभा में कार्यकाल दौरान किसी गैर-विधायक व्यक्ति को एक बार ही मुख्यमंत्री या मंत्री की शपथ दिलाई जा सकती है, उससे अधिक नहीं।

उन्होंने एक और उदाहरण दिया कि अगर कल उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय किसी प्रदेश मौजूदा मंत्री का विधायक के तौर पर निर्वाचन रद्द कर देती है, तो उस परिस्थिति में यह व्यक्ति यह कहकर मंत्री पद पर नहीं बना रह सकता है कि भारत के संविधान अनुसार वह गैर -विधायक के तौर पर अधिकतम छह महीने तक मंत्री बना रह सकता है। तब विधायक के तौर पर निर्वाचन रद्द होने के कारण उसे तत्काल मंत्री पद से भी त्यागपत्र देना पड़ेगा। हालांकि, अगर प्रदेश के मुख्यमंत्री चाहें, तो उस व्यक्ति तो ताज़ा तौर पर राज्यपाल से शपथ दिलाकर एक बार गैर-विधायक के तौर पर अधिकतम छह महीने के लिये दोबारा
मंत्री बना सकते हैं।

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